तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ - दुष्यंत कुमार 

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ

वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 


तू किसी रेल-सी गुज़रती है

मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ 


मैं तुझे भूलने की कोशिश में

आज कितने क़रीब पाता हूँ 


कौन ये फ़ासला निभाएगा

मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ


(दुष्यंत कुमार)

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